Monday, October 26, 2015

ठंड के संग कठफोड़वे की दस्तक

ठक-ठक, ठक-ठक, ठक-ठक, ठक
कठफोड़वे ने दी दस्तक।

सड़ी लकड़ियां, तने खोखले
खोज रहा है दीमक-कीड़े
करता रहता उठा-पटक,
चोंच है लम्बी, रंग चटक,

ठक-ठक, ठक-ठक, ठक-ठक, ठक
कठफोड़वे ने दी दस्तक।

उसे देखने जब भी निकलूं
जाने कहां वो जाए दुबक?
सोच रही हूं खड़ी-खड़ी
इंतजार करूं कब तक?

ठक-ठक, ठक-ठक, ठक-ठक, ठक
कठफोड़वे ने दी दस्तक।

Thursday, October 15, 2015

हरसिंगार की रंगोली

लौट रही है ठंड,
और साथ उसके,
मेरे घर के सामने
रोजाना सुबह
अपने आप ही बन जाने वाली
सफेद-केसरिया
खैवाली फूलों की
मीठी खुश्बूदार
रंगोंली

Friday, October 2, 2015

ओ री ओरिओल

लौट रही है ठंड,
और साथ उसके
मेरे कमरे की खिड़की से
दिखने वाले
अमरक के पेड़
पर नन्हे लाल-गुलाबी फूल;
और उनके पीछे
चली आई है
उनकी सुधी लेने
वो सुनहरी-पीली ओरिओल।

एक बार फिर से

एक बार फिर से हमने
बस अभी-अभी
दुनियां की सबसे बड़ी "डेमोक्रेसी"
होने का सुबूत दिया है।

एक बार फिर से हमने
बस अभी-अभी
जान ली है;
एक मुसलमान की।