Saturday, March 26, 2016

एक सलाह

ऐ सांप!
मेरी एक बात मानोगे?
तुम इंसानी शहरों में ना आया करो।
ये इंसान बड़ी सभ्य प्रजाति है
और
जो उनकी नज़र में सभ्य नही है
वे उन्हें सभ्य बनाने में लगे हुए हैं...

गर तुम्हें भी सभ्य बन जाने के स्वप्न मात्र से ही
डर लगता हो
तो
मेरी बात मान लो
और
किसी सचमुच के जंगल में
किसी पुराने दरख्त के
किसी कोटर का
रुख कर लो,
ऐसे जंगल की ओर
जो सभ्यता से कहीं दूर हों...

वरना यहां के दरख्त तो कबके सभ्य हो चुके
संवरे से ड्राईंगरूम्स् में सभ्य
बने सजे हुए हैं।

एक बिल्ली भीगी-भागी सी

बिल्ली भीगी
बिल्ली भागी
भीगी-भीगी
भागी-भागी
पेड़ पर चढ़ गई,
और लगी गुर्राने,
मैंने अपनी गलती मानी
पहुंचा उसे मनाने
कान पकड़कर मांगी माफी
तब मैडम जी नीचे आई
फिर जो उनकी फरमाइश थी
छककर खाई दूध-मलाई!

Sunday, March 13, 2016

घात

ऐ चिड़िया,
उस झूमती डाल से नीचे
झिलमिल झील के पानी में
क्या ताक रही हो?

ओह, तुम तो किंगफिशर हो
नीचे मछलियों पर घात
लगाए बैठी हो।

पर ज़रा
होशियार!
उस पाजी बाज़ से
जिसकी नज़र तुम पर ही है।