Monday, July 23, 2018

Over Bridge

कौन कहता है कि
उन्हें ख़बर नही,
वे तो चप्पे-चप्पे की
ख़बर रखते हैं;
वरना कैसे मंत्री जी के
आने के ठीक
एक दिन पहले
सड़क के तमाम
गड्ढे भर जाते?

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मंत्री जी चले गये
नये over bridge का
उद्घाटन कर;
बनकर तैयार खड़ा था
कई महिनों से,
अब फीता कट चुका है
मूहूर्त या शायद चुनाव देखकर;
बाजू वाली पुरानी सड़क,
अपने सीने पर लगे
नये पेबंद देखकर ही खुश है।

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आंधी आई, उड़ चला
टायलेट और हैंडपंप
के सामने हाथ जोड़े
मुस्कुराते खड़े
मंत्री जी की तस्वीर वाला
56 गज का होर्डिंग;
मंगरू ने कसकर उसे अब
सड़क किनारे अपनी
चूती मढ़ैया की
छत पर बांध लिया है;
मंत्री जी कहते फिर रहे हैं -
हमने गरीबों के सर पर छत दी है।

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मंत्री जी का मुखौटा
अपने चेहरे पर लगाए
एक इंसान जोर से चिल्लाया -
और नही तो क्या
मंत्री जी ने गरीबों के सर पर
छत दी है;
देखो तो ट्रेफिक सिग्नल पर
गुब्बारे बेचने वाली बातरा अब
मां‌ के साथ
फुटपाथ से उठकर
over bridge के नीचे
अपना डेरा जमा
धूप-बारिश से छुटकारा
पा चुकी है।

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तेज बारिश, टूटी सड़कें
सड़कों पर पानी,
मानो कयामत;
धम-धड़ाम की आवाज से साथ
पप्पू के लड़के की बाईक
फिसली-उछली,
और लड़का खुले सेप्टिक टैंक में
समा गया;
मंगरू, बातरा और उसकी मां
दूर खड़े ही ये सब देखते रहे;
कितने बेदिल होते हैं
ये सड़कों पर रहने वाले लोग।

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लाश निकाल दी गई
टैंक से
बड़ी दिक्क्त हुई
उन दो बाल्मीकियों को भी
जिन्होंने जीवन भर
मल से बजबजाते
सेप्टिक टैंकों
में गोते लगाए हैं;
सौ रुपए मिले उन्हें इस काम के,
पप्पू से लेकर पुलिस वालों ने दिये;
सेप्टिक टैंक तो अब भी खुला हुआ है,
हां मंगरू की मढ़ैया
पुलिस वालों ने हटवा दी और
बातरा का कुछ अता-पता नही।

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