यज़न और यासमीन किसी और दिन की ही तरह, आम बच्चों सरीखे, मोबाईल पर साथ-साथ कुछ खेल रहे थे कि अचानक तेज धमाके के साथ बत्ती गुल हो गई। पहले तो कुछ समझ ही नही आया कि हुआ क्या? पर ऐसा कुछ हुआ था जो उन दोनों ने पहले कभी महसूस नहीं किया था और जो उनकी जिंदगी बदलने वाला था।
धमाका इतना तेज था कि यज़न के कान गूंजनें लगे और उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। उसे ऐसा लगा जैसे उसके चारों ओर सब कुछ हिल रहा है। जब यह सब थमा तब उसे अपने हाथ में पकड़े हुए मोबाईल की याद आई; जिसकी मदद से उसने रोशनी की। उसने देखा कि उसके घर की पक्की छत नीचे की ओर गिरी हुई है; उसके सर से महज़ एक-दो सेंटीमीटर दूर आकर रूक गई है। छत गिरने से घर की सभी चीजें उसके नीचे दब गई थीं। वो तो महज इत्तेफाक ही था कि जब यह सब हुआ वो दोनों भाई-बहन ज़मीन पर थे, तो बच गये।
बड़ी मुश्किल से, छत पर बने एक कुछ बड़े से सुराख से वो दोनों मलबे से बाहर निकले और अपने मां-बाप को पुकारने लगे। उनकी पुकार कुछ देर बाद चिल्लाने में तब्दील हो गई। लेकिन उनके मां-बाप की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। हां, उनकी चीख-पुकार सुनकर आस-पास कुछ और लोग इकठ्ठा हो गये। और उनके मां-बाप को ढूंढने में मदद करने लगे। लेकिन वो जिंदा नहीं मिले। वे दोनों और उनके साथ यज़न और यासमीन का बड़ा भाई, मलबे में दबकर मर चुके थे।
अब ना ही उन दोनों के पास मां-बाप का ही कोई साया था और ना ही रहने का ठिकाना।
उनके घर की छत का गिरना किसी कुदरती गुस्से का नतीजा नही था। बल्कि उसका कारण थी वो जंग जो पिछले कई दिनों से यज़न और यास्मीन के मुल्क में छिड़ी हुई थी। कोई कहता ये जंग एक साल से चल रही है, तो कोई सत्तर साल से, और कोई-कोई तो हज़ारों साल पुरानी बतलाता।
जंग की हकीकत जो भी हो, पर उसके कारण आज यज़न और यास्मीन लावारिश हो चुके थे। पर वो ऐसे अकेले नही हैं। दुश्मनों की तरफ से चलाई जा रहीं मिसाईलें लगातार रिहाइशी ईलाके तबाह कर रही थी और उसके साथ बर्बाद हो रही थी ना जाने कितनी ही जिंदगियां। हज़ारों बच्चों ने अपने मां-बाप खो दिये हैं और हज़ारों मां-बापों ने अपने बच्चे। और ये सब खानाबदोशों से भी बदतर जिंदगी जीने को मज़बूर हैं। धरती का एक टुकड़ा, जिसे एक पक्ष अपना देश बतलाता है तो दूसरा अपना, आज जल रहा है।
और 12 साल के यज़न को इस बात का गुस्सा है। वो दुश्मनों से तो नाराज़ है ही, लेकिन उनसे भी खफा है जो उनके नाम पर लड़ रहे हैं।
इन दिनों वो प्लास्टिक के तंबू में रहता है। अपने-अपने शहर छोड़कर आये उन जैसे बर्बाद हुए असंख्य लोगों ने समुद्र के किनारे एक कैंप सा बना लिया है। वो अपने देश के छोर पर पहुंच गए हैं। जहां से आगे धरती तो है, लेकिन उनका देश खत्म हो जाता है। हर रात समुद्र के किनारे बैठकर यज़न यही चिंता करता है कि अगर यहां से भी भागना पड़ा तो कहां जायेंगे? वो अपने मां-बाप, भाई और दोस्तों को भी याद करता है।
दिन भर तो उसे सोचने का मौका ही नही मिलता। खाने और पानी का जुगाड़ ही काफी सारा समय ले लेता है। उसे अक्सर ही इनके लिए लड़ना पड़ता है, उनसे जिनके हालात उसके ही जैसे हैं। कभी मिलता है और कभी नही भी। और जब मिलता भी है तो भी अक्सर ही काफी नही होता। और ये एक दिन की बात नहीं, हर रोज यह सब गुजरता है।
उसके मां-बाप जब जिंदा थे तो उसे ये सब सोचने की जरूरत नही थी। पर अब वो हैं नही और उसे अपनी छोटी बहन का भी तो ख्याल रखना है। दिन भर की जूझ के चलते यज़न का स्कूल तो अब छूट चुका है, लेकिन वो अपनी बहन को जरूर से कैंप मे चल रहे एक अस्थायी स्कूल में भेजता है। यास्मीन बड़ी होकर एक डेंटिस्ट बनना चाहती है। उन लाखों बच्चों के लिये, जिनकी जिंदगियां जंग ने तबाह कर दी है, जिनके स्कूल हमलों में धराशायी हो गये हैं, ऐसे अस्थायी स्कूल कुछ घंटों के लिये ही सही बच्चों को अपनी पुरानी खुशनुमा जिंदगी का एहसास दे जाते हैं।
लेकिन यज़न भी है तो आखिर एक बच्चा ही जिसे फुटबाल और पतंगबाज़ी का शौक है। वो स्कूल नही जा पाता तो क्या; शाम को असीमित आसमान में अपनी बनाई पतंग उड़ाते हुए वो सब कुछ भूल सा जाता है। हल्का हो जाता है मन उसका पतंग की तरह। वो पतंग जो उड़ भी रही होती है और अपनी जड़ से भी जुड़ी रहती है। लेकिन यज़न और यास्मीन को अपनी जड़े फिर से जमानी होंगी। क्या वो ऐसा कर पायेंगे? क्या आसमान से बरसती आग उनके उस कैंप को छोड़ देगी?
https://www.youtube.com/watch?v=S871wBrfd7s