(1)
सुबह-सुबह
मैंने बांधे अपने जूते
निकल पड़ा सड़क पर...
वो भी निकला उसी वक्त
बांधे अपनी साईकिल पर
दो कनस्तर…
मैं दौड़ा तीन चक्कर मैदान के
उसने सात किलोमीटर साईकिल चलाई एक तरफ…
घर लौटते हुए मैंने चुन लिये
अपनी बेटी के लिये
जमीन पर बिखरे खैवाली फूल…
उसने अपने कनस्तर भरे
हास्टलों के बचे-फेंके खाने से
जुटाया अपने सुअरों के
लिये दाना…
मैं पहुंच गया हूं घर
सुड़क रहा हूं चाय
वो अभी रास्ते में ही है।
(2)
मैंने लॉग-आउट किया
अपने ऑनलाइन एकाऊंट से
सब ठीक ही तो था
आ गई थी तनख्वाह
इस महीने की भी
चैन की सांस ली मैंने…
बेवज़ह लोग अफवाह
फैलाते हैं
कि सरकार लुट चुकी है…
अरे ऐसे कैसे लुट जायेगी
इतने बड़े लोकतंत्र
की सरकार…
जिसे चुना है हम जैसे
जागरूक नागरिकों ने
इस्तेमाल कर अपने वोट का अधिकार…
तभी
उसने मेरे आफिस का
दरवाजा खटखटाया
जानता था मैं उसे
सफाई का काम करता है
मेरे आफिस में
रोज़ाना झाड़ू देता है…
बोला सर आपसे कुछ काम है
मैंने कहा, बताओ…
बोला, सर बुरा मत पाईएगा
कुछ मदद चाहिये
भाई की फीस देनी है और
बिजली का बिल भी और
चुकाने हैं कुछ उधार…
हम लोगों को दो महिनों से नहीं
मिली है पगार…
(3)
हम भी गजब हैं
जब पैदल सड़क पर होते हैं
तो गाड़ी वालों को गाली देते हैं
और
जब गाड़ी में होते हैं
तो पैदल चलने वालों को कोसते हैं…
(4)
हमने मनाया संविधान दिवस
Constitution Day
अंग्रेजी में पढ़ी प्रस्तावना
The Preamble
हमने पढ़ा Sovereign
एक ऐसे समय में
जब हमने इस मूल्य को
ताक पर रखकर
किसी और की sovereignty छीन ली
हमने पढ़ा Socialist
एक ऐसी तारीख में
जब बाज़ारवाद और पूंजीवाद
हमने सर माथे बैठा रक्खा है
हमने पढ़ा Secular
जो अब Sickular बन चुका है
हर गली कूचे में पिटता नज़र आता है
हमने पढ़ा Democratic
उस दौर में
जब आज हमारे चुने हुए
प्रतिनिधी खरीद-फरोख्त के डर से
पांच सितारा होटलों में
नज़रबंद रखे जाते हैं
हमने पढ़ा Liberty
लेकिन कुछ डरते-डरते
हमने पढ़ा Equality
लेकिन हम नहीं जानते
ये किस चिड़िया का
नाम है
हमने पढ़ा Justice
जिसकी अब बस
दुहाई ही दी जा
सकती है
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