Friday, July 25, 2025

कुछ कविताएं

(1)

सुबह-सुबह 

मैंने बांधे अपने जूते

निकल पड़ा सड़क पर... 

वो भी निकला उसी वक्त

बांधे अपनी साईकिल पर 

दो कनस्तर…


मैं दौड़ा तीन चक्कर मैदान के

उसने सात किलोमीटर साईकिल चलाई एक तरफ…


घर लौटते हुए मैंने चुन लिये 

अपनी बेटी के लिये 

जमीन पर बिखरे खैवाली फूल…

उसने अपने कनस्तर भरे 

हास्टलों के बचे-फेंके खाने से

जुटाया अपने सुअरों के 

लिये दाना…


मैं पहुंच गया हूं घर

सुड़क रहा हूं चाय

वो अभी रास्ते में ही है।


(2)

मैंने लॉग-आउट किया 

अपने ऑनलाइन एकाऊंट से

सब ठीक ही तो था

आ गई थी तनख्वाह 

इस महीने की भी

चैन की सांस ली मैंने…


बेवज़ह लोग अफवाह 

फैलाते हैं 

कि सरकार लुट चुकी है…

अरे ऐसे कैसे लुट जायेगी

इतने बड़े लोकतंत्र  

की सरकार…

जिसे चुना है हम जैसे 

जागरूक नागरिकों ने 

इस्तेमाल कर अपने वोट का अधिकार…


तभी 

उसने मेरे आफिस का 

दरवाजा खटखटाया 

जानता था मैं उसे 

सफाई का काम करता है

मेरे आफिस में 

रोज़ाना झाड़ू देता है…


बोला सर आपसे कुछ काम है

मैंने कहा, बताओ…

बोला, सर बुरा मत पाईएगा

कुछ मदद चाहिये

भाई की फीस देनी है और

बिजली का बिल भी और

चुकाने हैं कुछ उधार…

हम लोगों को दो महिनों से नहीं 

मिली है पगार…


(3)

हम भी गजब हैं

जब पैदल सड़क पर होते हैं

तो गाड़ी वालों को गाली देते हैं

और 

जब गाड़ी में होते हैं 

तो पैदल चलने वालों को कोसते हैं…  


(4)

हमने मनाया संविधान दिवस

Constitution Day

अंग्रेजी में पढ़ी प्रस्तावना 

The Preamble


हमने पढ़ा Sovereign

एक ऐसे समय में

जब हमने इस मूल्य को 

ताक पर रखकर

किसी और की sovereignty छीन ली


हमने पढ़ा Socialist

एक ऐसी तारीख में

जब बाज़ारवाद और पूंजीवाद 

हमने सर माथे बैठा रक्खा है


हमने पढ़ा Secular

जो अब Sickular बन चुका है

हर गली कूचे में पिटता नज़र आता है


हमने पढ़ा Democratic

उस दौर में 

जब आज हमारे चुने हुए 

प्रतिनिधी खरीद-फरोख्त के डर से 

पांच सितारा होटलों में 

नज़रबंद रखे जाते हैं  


हमने पढ़ा Liberty 

लेकिन कुछ डरते-डरते


हमने पढ़ा Equality

लेकिन हम नहीं जानते 

ये किस चिड़िया का

नाम है 


हमने पढ़ा Justice

जिसकी अब बस 

दुहाई ही दी जा 

सकती है

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