(I)
आज अपने सपने में वो एक बीज रोप रहा था। किसी ने उसे वो बीज यह बताकर बेचा था कि इसके पौधे में जो फूल लगेंगे वो कभी नहीं मुरझाएँगे। वो हर किसी की बात पर विश्वास कर लेता था, उसकी बात पर भी कर लिया।
उसने पानी झोंककर अपने आँगन की कड़ी मिट्टी में एक छोटा सा कमरा बनाया और फिर उसने पानी से भर दिया। कई सालों से उसने अपने आँगन में कोई पौधा या बीज नहीं रोपा था। मिट्टी इतनी सख्त थी कि पानी झट से सूख जाता। वो बाहर-बाहर पानी से गड्ढा को भरता, लेकिन सख्त धरती हर एक बूँद सोख लेती।
सभी से शाम हो गई। फिर लगा कि धरती की प्यास बुझ रही है। गड्ढे में पानी रुकने लगा। उसने सम्भालकर रखने बीज को अपनी हथेली पर लिया। और फिर आहिस्ता से अपने अंगूठे से दबाकर उस बीज को मिट्टी में दबा दिया।
वो वहीं बैठ गया, उस जगह को निहारते हुए जहाँ उसने वो बीज रोपा था। वो लगातार आँख लगाकर उस जगह को देखने जा रहा था, जैसे उसने कोई और काम नहीं हो। मानो कि वो सपना सिर्फ इसलिए देख रहा है कि उसने वो फूल देखना है जो कभी नहीं मुरझाएगा।
बीज से अंकुर फूटा और एक कोमल पौधे ने अंगड़ाई लेते हुए अपना सर उठाया। उसकी दो कोपलों में ऐसे फूल गए जैसे वे उन पर जमी हमारी नजरों के मुकाबले को गलाने लगाना चाहते हों। ऐसा उसे लगा। देखते ही देखते पौधा बढ़ने लगा। और फिर उसमें कलियाँ आईं - सिर्फ एक।
पत्ते फटने के साथ ही वो कली भी फूटी और जैसे-जैसे दिन चढ़ा, कली की पंखुड़ियाँ एक-एक करके खिलने लगीं। वो फूल बन चमकी थी - एक खूबसूरत फूल। उसने इतना सुन्दर फूल पहले कभी नहीं देखा था - सपने में भी नहीं। वो अब सरककर फूल से चिपक कर बैठ गया।
कभी उस फूल को वो आहिस्ता से छूता, कभी एकदम पास से निहारता और कभी आँखें बन्दकर उसकी गंध को एक लम्बी साँस के साथ अपने अन्दर लेने लगता।
पहले तो शायद वो कभी ना चला भी जाता, लेकिन अब तो वो बंध गया था फूल के मोह-पाश में।
लेकिन फिर जैसे-जैसे दिन ढ़ला, फूल की रंगत उतरती गई। उसे लगा कि कहीं ना कहीं फूल को उसकी नजर तो नहीं लग गई।
और फिर एक पंखुड़ी थोड़ी सी झाँकी और टूट कर गिर गई। उसे लग रहा था कि उस पंखुड़ी की जगह एक और नई पंखुड़ी निकल आएगी। लेकिन एक और पंखुड़ी झड़ गई। फिर एक और... एक और। देखते ही देखते सारी पंखुड़ियाँ झड़ गईं।
ना जाने क्यों उसने उसकी बात पर भरोसा किया जिसने उसे वो बीज ये कह कर बेचा था कि इसके पौधे में जो फूल लगेंगे वो कभी नहीं मुरझाएँगे। वो इंतज़ार करता रहा नई पंखुड़ियों के निकलने का। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
फूल मुरझा चुका था।
किसी ने उसे सपना बेच दिया था; वो भी सपने में।
सपना टूट गया।
(II)
आज वो अपने सपने में सवाल कर रहा था। उसने आज तक कभी भी किसी से कोई सवाल नहीं किया था। सपने में भी नहीं।
लेकिन आज वो सवाल कर रहा था।
वो जिससे सवाल कर रहा था, उससे किसी ने कभी कोई भी सवाल नहीं ही किया था। सपने में भी नहीं ही।
उसने महसूस किया कि उसके होंठ और हाथ काँप रहे हैं, लेकिन वो फिर भी सवाल कर रहा है।
उसने पूछा कि क्यों लोग तुमसे सवाल नहीं करते? क्या वो तुमसे डरते हैं?
लोग मुझसे नहीं डरते, सवालों से डरते हैं। मैंने तो बस इस डर का इस्तेमाल करना सीखा है।
जवाब कमल चमका था।
सपना टूट गया।
(III)
आज अपने सपने में वो अपनी ही कहानी लिख रहा था। सपने में जहाँ से कहानी शुरू हुई, उसने देखा कि उसने अपनी बीवी को मार दिया है, सपने में, कहानी में। लेकिन फिर उसे लगा कि वो उसे कभी जबरदस्ती नहीं कर सकता तो उसने उसे ज़िन्दा कर दिया। पर फिर ना जाने क्यों, शायद उसे लग रहा था कि कहानी की दिशा है, कोई मरने, तो उसने अपने आप को ही मार दिया, सपने में, कहानी में। लेकिन फिर उसे अपनी बेटी का ख्याल आया जिसे वो हमेशा बड़ी होते देखना चाहता था, और मरने का बहाना तो ये संभव नहीं था तो उसने अपने आप को ज़िन्दा कर दिया। बात ये भी थी कि फिर कहानी कौन लिखता?
पर कहानी की जरूरत तो बनी हुई थी, तो उसने सोचा कि कौन है वो जिससे वो सबसे ज़्यादा नफरत करता है? वो उसे ही मार देगा, सपने में, कहानी में। काफी देर तक वो सोचता रहा। अपने जान-पहचान, मिलने-जुलने वालों में तो उसने कोई भी ऐसा नहीं मिला जिससे वो इतनी नफरत करता हो कि उसे मार सके, सपने में, कहानी में। हाँ एक शख्स जरूर था, जिससे वो कभी मिला तो नहीं ही था, पर उसे लगता था कि वो उससे सबसे ज़्यादा नफरत करता है। लेकिन ऐसे इंसान से जिससे पहले वो कभी मिला ना हो, जो उसने जाना ना हो, उसे मारने का ख्याल उसने कम से कम ज़रूर नहीं ही किया, सपने में, कहानी में।
उसे समझ आ रहा था कि वो किसी को भी नहीं ही मार सकता, सपने में, कहानी में। उसे उलझन होने लगी। कम से कम इधर-उधर की सोचते हुए वो सोचने लगा कि आखिर जरूरत ही क्या है किसी को मारने की? क्या कोई कहानी ऐसी नहीं हो सकती जिसमें कोई मरता ना हो? उसे लगा कि शायद वो ऐसी कहानी लिख सकता है, जिसमें कोई मरता ना हो। और वो लिखने लगा।
तभी उसने देखा कि एक भीड़ आई - भीड़ क्या सैलाब सा उमड़ आया, जो उसे मार कर चला गया।
उसने पूछा कि मुझमें क्यों मारा?
जवाब मिला - हमने तुझे नहीं मारा, तुम्हारी इस खतरनाक कहानी ने तुझे मारा है, ऐसी कोई कहानी नहीं हो सकती जिसमें कोई मरता ना हो।
भीड़ चली गई, सैलाब छूट गया।
सपना टूट गया।
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