Saturday, January 19, 2013
Sunday, December 30, 2012
एक बात, कुछ सवाल
नाम अगर राम हो तो कोई भगवान् नहीं बन जाता,
और फिर राम सिंह तो इंसान भी नहीं है,
जानवर है।
कम नहीं हैं सोचने वाले कि
क्यों उसने उसे चांटा मारा, काटा?
अगर ना करती ऐसा तो,
वो ऐसी दरंदगी पर ना उतरता।
बलात्कार ही होता ना,
पर जान से तो रह जाती,
शायद ज़िंदा बच जाती।
(जैसे बलात्कार कम दरंदगी है)
पर आदर्श पुरुष राम ने भी तो सिर्फ एक बात पर सीता को घर से निकाल दिया था।
और उसके साथ तो बलात्कार हुआ था,
वो कैसे रह पाती अपने घर में,
जी पाती इस रामपरायण समाज में,
अगर ज़िंदा बच भी जाती तो।
पर सवाल बस इतना नहीं है,
सवाल और भी हैं।
आखिर पुरुषों का वो सम्मेलन ही क्यूँ हो जिसमें एक महिला की बोली लगे,
ऐसा समाज ही क्यूँ हो जिसमें ऐसा संभव हो।
क्या इस समाज को ही बदलने की ज़रुरत नहीं ?
पर कैसे बदलेगा ये समाज?
और किस दिशा में?
कौन बदलेगा इसे?
क्या कोई कृष्ण या फिर कोई राम इसे बदलेगा?
क्या भगवान् भरोसे चल रहा ये समाज भगवानों से बदलेगा ?
क्या इस समाज के भगवान् भी बदलेंगे?
क्या इस समाज के इंसान भी बदलेंगे?
Monday, August 20, 2012
दो शिक्षकों का संवाद
शि१: अब तो सरकारी स्कूलों में सिर्फ गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के ही बच्चे पढ़ते हैं.
शि२: जो न क्लास में आते हैं और नहीं ट्यूशन पढने.
शि१: और जब फेल हो जाते हैं तब उनका दिमाग खुलता है.
इस बार तो हमारे स्कूल में 34 बच्चों की सप्लीमेंट्री थी (शायद हाई स्कूल में).
सप्लीमेंट्री परीक्षा में 29 बैठे, जिसमें से 18 को मैंने पास करवा दिया.
शि२: बहुत ज्यादा को करवा दिया.
शि१: हाँ थोडा कष्ट हुआ 3-4 बार अनुपपुर आना जाना पड़ा.
किसी से 500 लिए तो किसी से 800.
जो देर से आया तो उसके लिए रेट बढ़ता गया.
बात कर ली थी, हमें ही कॉपी और रिजल्ट बनाने को दे दिया.
कुल 9000 इकठ्ठा हुए, 1500 वहां पहुचाये.
शि२: बड़े कम लोग चढ़े यहाँ से ट्रेन में
शि१: अरे आगे लोकल निकली हैं ना. इसीलिए.
लोगों का क्या है जो ट्रेन मिली चढ़ गए. कौन सा टिकेट लेना है.
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