Sunday, August 24, 2014

मूड

मूड तो सुबह-सुबह ही खराब हो गया
प्रोफ़ेसर साहब का
जब गली के कुत्तों ने सैर के दौरान
दौड़ा दिया उन्हें।

और फ़िर दिन भर उन ठंडी मीटिंगों
में‌ बैठे रहे
जिनमें सिर्फ़ दो ही चीजें गर्म होती हैं:
एक चाय और दूसरी
VC की फटकार।
मूड और बिगड़ गया,
इतना कि class में बच्चों के
खिलखिलाते-जगमगाते चेहरे देख
कोफ़्त होने लगी।

शाम को घर पहुंचे
बीवी के हाथों की मीठी चाय की आस में।
पर बीवी नदारद,
लौटी नहीं‌ थी पार्क से
जहां‌ बच्चों को लेकर गई थी।
मूड का तो पूछो मत,
सत्यानाश हो गया।

गुस्से में‌ निकले घर से,
कुछ दूर ही
एक नई बन रही बिल्डिंग के वर्कर,
काम के बाद एक झुंड में कबड्डी खेल रहे थे।
जाने क्या हुआ,
प्रोफ़ेसर साहब जोरों‌ से भौंकने लगे,
और गुर्राते हुए दौड़ पड़े उनकी तरफ़।

सुबह और शाम में बस इतना ही फ़र्क रह गया
कि सुबह एक के पीछे झुंड था
और शाम को झुंड के पीछे एक।

Friday, August 22, 2014

दो संवाद

पहला

"अरे भैया, पिचकू है क्या?"

"पिच्च्च्क्कू! ये क्या होता है?"

"अरे ईमली की चटनी।"

"नहीं भईया, वो तो नहीं है। ईमली है कच्ची। सस्ती भी पड़ेगी। दे दें?"

"पिचकू तो नहीं मिल रहा कहीं। चलिये दे दीजिये 100 ग्राम। वैसे अच्छा तो होगा ना। दही-बड़े के साथ की चटनी बनाने के लिये?"

"अरे भईया का बात करत हो। बहुत बढ़िया होगा। अच्छा एक बात और कहें आपसे?"

"हां-हां, बतलाईये।"

"आप लोगों ने ना औरतों की आदत खराब कर दी है, ये सब बना-बनाया सामान खरीद कर। पिचकू-फिचकू और ना जाने क्या-क्या। अरे कुछ काम-वाम भी करने दीजिये उन लोगों को। बस, बैठे-बैठे आराम से मुटाया करती हैं।"

"हम्म्म्म्म!"

"अरे हम लोग इतना काम करते हैं, कुछ वो भी तो करें।"

"लाईये भैया ईमली, कितना हुआ?"


दूसरा

"बढ़िया करवा लिये आपने नीचे के कमरे टाईल्स वगैरह लगवाकर।"

"हां जी, बहुत दिनों से विचार था, हो ही गया।"

"वैसे कितने दिनों तल चला काम?"

"यही कोई 4-5 महिना। दो-चार मजदूर लगे। हो गया।"

"कितनी मज़दूरी है यहां आजकल?"

"250-300 दिहाड़ी, पर आजकल मज़दूर मिलने में दिक्कत होती है।"

"अरे आपको तो मिल गये। हमारे यहां तो मिलते ही नहीं। सरकार 2 रुपया किलो चावल और 5 रुपये किलो दाल बांट रही है। बैठे-बिठाये मिल रहा है। फिर कोई काम क्यूं करे। सब अलाल हुए पड़े हैं।"






आखिर इन दिनों बनारसी सो क्यों नहीं‌ पाते?

मौका मिला है तो एक चुटकी ले ही ली जाए।

ज़रा सोचिये, आप बनारस में हों। गरमी की एक रात आपने उनींदी ही बिताई है क्यूंकि बिजली रात भर आंख-मिचौली खेलती रही और फिर सुबह जैसे ही आप अखबार की हेडलाईन देखते हैं, बड़े-बड़े अक्षरों में‌ लिखा मिलता है।