Saturday, October 11, 2014

प्रधानमंत्री मोदी के नाम एक चिठ्ठी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी,

स्वच्छता और सफाई के प्रति आपका समर्पण देखकर लगा कि आपको एक पत्र लिखकर अपने मन की भावनाओं को भी सामने रखूं। यह पत्र बहुत लम्बा नही होगा तो आशा है आप इसे पढ़ेंगे व जवाब भी देंगे। पत्र के माध्यम से ना सही, अपने भाषणों में ही जिसे सुनने ना जाने कितने ही सफाई प्रेमी व सफाई कर्मचारी भी आते होंगे।

मोदी जी, जैसा कि मेरी समझ में आया सफाई के काम के प्रति आपका यह समर्पण व आदरभाव कोई आज की बात नहीं है। व्यक्तिगत जीवन में तो आप साफ-सफाई से रहते ही हैं और राजनीतिक जीवन में भी आपने अपनी यह प्रतिबद्धता गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर 'निर्मल गुजरात' जैसे कार्यक्रमों व कर्मयोग जैसी किताबों के माध्यम से जग-जाहिर की है। अपनी किताब 'कर्मयोग' में सफाई के काम के लिये आप लिखते हैं:

"किसी ना किसी समय किसी को दिव्यज्ञान हुआ होगा कि समूचे समाज और भगवान की खुशी के लिये उन्हें यह काम करना है। यही कारण है कि सदियों से यह सफाई का काम उनकी आंतरिक आध्यात्मिक गतिविधि के रूप में चलता रहा। इसी तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलता रहा।"

मोदी जी, हालांकि मैं आपके इस दर्शन से सहमत नहीं हूं, क्यूंकि मेरा मानना है कि सदियों से समाज के एक वर्ग-विशेष की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के द्वारा यह काम किसी दिव्यज्ञान के चलते नहीं बल्कि मजबूरीवश किया जा रहा है। लेकिन मेरा मानना है कि आप अब भी अपने लिखे पर विश्वास करते होंगे।

अगर ऐसा है तो मेरा आपसे अनुरोध है कि अब जब आप इस देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठे हुए हैं तो क्यूं ना आज इस मौके का पूरा फायदा उठाकर आप अपने दर्शन को लागू करें। ऐसा कहा जाता है कि  इस देश में हमेशा से ज्ञानियों का सम्मान हुआ है और जैसा कि आपने ही लिखा सफाई का काम करने वाले तो दिव्यज्ञानी हैं, इसलिये इनका तो सम्मान होना ही चाहिये।

जैसा कि मेरी समझ में आया कि आपको लगता है कि सफाई एक ऐसा काम है जो बहुत जरूरी है यानि की एक स्थाई काम है।  लेकिन इस काम में ना जाने कितने ही लोग अस्थाई रूप से लगे हुए हैं जिन्हें सुविधाओं के नाम पर तो कुछ नहीं मिलता; बस गनीमत है कि गुजारे लायक कमाई हो जाती है। मैला ढ़ोने व गटर की सफाई के काम में लगे लोगों के हालात तो अमानवीय है, फिर चाहे वो बनारस हो या दिल्ली। आश्चर्य होता है कि इस देश में दिव्यज्ञानियों के ऐसे भी हालात हैं। 

मेरा आपसे अनुरोध है कि आप इनके लिये एक सुचारू व्यवस्था बनाकर व लागू करवाकर इन सभी के काम को पक्का कर दें। ताकि ये सभी एक सम्मानजनक जीवन जीने के राह पर मजबूती से आगे बढ़ सकें।  आप जैसे मजबूत नेता को ऐसा करने में कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिये।

आपने अमरीका में अपने एक भाषण में कहा था कि "एक सफाई कर्मचारी को भी लगना चाहिये कि वो एक अच्छा और जरूरी काम कर रहा है; प्रधानमंत्री से भी अच्छा काम कर रहा है।" मुझे उम्मीद है कि अगर आप इस सुझाव पर अमल करेंगे तो सच में सफाई कर्मचारियों को ऐसा ही लगेगा।

आपका,
विवेक

Monday, October 6, 2014

यात्राएं

पटना में हुई घटना से एक पुरानी कविता याद आ गई

पढ़ी दो खबरें अखबार में।
दोनों ही मौत की थीं।
मर गये थे 6 जगन्नाथ यात्रा में हुई भागदौड़ में,
और अमरनाथ यात्रा से जुड़े प्रदर्शनों में,
4 मर गये थे इंदौर में।

सोच में पड़ गया मैं,
आखिर क्यूं ये धार्मिक यात्राएं,
होने से पहले,
होने पर,
और होने के बाद
जाने कितने ही लोगों को
धर्म की, आस्था की और श्रद्धा की बलि
चढ़ा जाती हैं?

Monday, September 22, 2014

सांप

शायद सांप भी इंसान से उतना ही डरते हों जितना कि इंसान सांप से। खैर ये डर एकतरफ़ा हो या दोतरफ़ा, मैं अपनी बात जानता हूं। आज अपने घर के जालीदार अहाते में बैठा कुछ लिख रहा था तो ये महोदय या महोदया मुझसे बस 1 मीटर की दूरी पर टहल रहे थे। इन दिनों बहुत बारिश हो रही है यहां, शायद उसी का नतीजा हो वरना मैंने इस तरफ़ नहीं देखा था इन्हें। मेरे तो पूरे शरीर में‌ सिरहन दौड़ गई। आंख बंद करता हूं तो उनकी वो मस्त चाल डरा जाती है। अभी भी उनके बारे में‌ सोच-सोचकर दिल की धड़कनें बढ़ा रहा हूं और घर की खिड़कियां बंद कर रहा हूं ।

दया हो उनकी जो मेरी तरफ नही आये और मौका दिया कि ये तस्वीर उतार लूं।