Thursday, April 24, 2014

संत मोदी

इन दिनों जिधर नजर पड़ती है वहीं संत मोदी की धूम है. उनके साक्षात्कारों में उनकी बातें‌ सुनकर कबीर का वो दोहा याद आ जाता है कि 

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोइ,
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होइ। 

जाने उनकी वाणी में ये परिवर्तन कब हुआ और क्यूं, पर कुछ सालों पहले तक तो उनके जीवन का मूल-मंत्र जो मुझे समझ आता था वो ये था कि.

ऐसी वाणी बोलिये, जम के झगड़ा होये, 
और उससे कुछ मत बोलिये जो आप से तगड़ा (corporate-houses) होये। 
(Courtesy: Raju Srivastava interpretation mine) 

खैर कभी कभी तो लगने लगता है कि सच में मोदी संत हो गये हैं। और उनकी बातों में सच्चाई है, वो सच में विकासपुरूष ही हैं। पर जब हाल ही में कुछ जानकारियां मिली जो मोदी के गुजरात विकास के दावों की बखियां उखाड़ देती हैं तो बोधिसत्व नाम के एक जनकवि की कुछ लाईनें याद आ गईं।

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है...

उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो, 
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है।


Dr. Atul Sood on the Truth Behind Modi's Development Model


A documentary by Gopal Menon busting the myths about Narendra Modi's vibrant Gujrath campaign

http://www.countercurrents.org/menon190414.htm


Friday, January 17, 2014

समन्दर

समन्दर के किनारे चुपचाप खड़े होकर उसे आंखों में भरते हुए ना जाने क्या कुछ ज़हन में आता है। सबसे पहले तो उसकी विशालता के सामने अपने अस्तित्व के छोटे और क्षणिक होने का एहसास होता है। और फ़िर समन्दर की आती जाती लहरें पैरों को कभी प्यार से सहलाते तो कभी जोरों से हिलाते ये कह जाती हैं कि जो आया है उसका जाना निश्चित है और इस क्रम में सुख और दुख दोनों ही मिलेंगे। वापिस जाती लहरों के साथ पैरों के नीचे से सरकती हुई रेत को चाहे जितनी भी मजबूती से खड़े रहकर पकड़ने की कोशिश करो वो उतनी ही ज्यादा और तेजी से सरकती है। 


Monday, November 18, 2013

वो गुज़र गये

दिवाली की सुबह मेरे बड़े भाई साहब सोनू और भतीजा नानू एक सड़क हादसे में गुज़र गये।