इन दिनों जिधर नजर पड़ती है वहीं संत मोदी की धूम है. उनके साक्षात्कारों में उनकी बातें सुनकर कबीर का वो दोहा याद आ जाता है कि
ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोइ,
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होइ।
जाने उनकी वाणी में ये परिवर्तन कब हुआ और क्यूं, पर कुछ सालों पहले तक तो उनके जीवन का मूल-मंत्र जो मुझे समझ आता था वो ये था कि.
ऐसी वाणी बोलिये, जम के झगड़ा होये,
और उससे कुछ मत बोलिये जो आप से तगड़ा (corporate-houses) होये।
(Courtesy: Raju Srivastava interpretation mine)
(Courtesy: Raju Srivastava interpretation mine)
खैर कभी कभी तो लगने लगता है कि सच में मोदी संत हो गये हैं। और उनकी बातों में सच्चाई है, वो सच में विकासपुरूष ही हैं। पर जब हाल ही में कुछ जानकारियां मिली जो मोदी के गुजरात विकास के दावों की बखियां उखाड़ देती हैं तो बोधिसत्व नाम के एक जनकवि की कुछ लाईनें याद आ गईं।
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है...
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो,
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है।
Dr. Atul Sood on the Truth Behind Modi's Development Model
A documentary by Gopal Menon busting the myths about Narendra Modi's vibrant Gujrath campaign
http://www.countercurrents. org/menon190414.htm
http://www.countercurrents.