OP उन लड़को में से नहीं (जिनमे मैं भी आता हूँ) जो खाना बनाने का शौक तो रखते हैं पर कुकर की सीटी भी नहीं लगा सकते, उसे खाना बनाकर औरों को खिलाने से प्यार था (उम्मीद है अब भी होगा)...मेरी आज तक उससे ऐसी कोई भी बात-चीत नहीं हुई जिसमें खाना बनाने का जिक्र ना आया हो..
उसके बचपन का नाम गोपी था, बड़ा मस्त हसमुख बच्चा था वो, मोटा ताजा...पिता जी किसी दूसरे शहर में काम करते, और वो अपनी डॉक्टर माँ, छोटी बहन और दादा जी के साथ ही रहता...बैठना और चलना शुरू करते ही उसमे एक अच्छे कुक होने के गुण नज़र आने लगे थे...माँ जब भी रसोई में होती तो पास जाकर खडा हो जाता; खाना बनते बनते ही चखने की जिद करता, बोल तो पाता नहीं था तो अजीब से मुंह बनाकर अच्छा या खराब बना है, ये अपनी माँ को बताता...थोडा बड़ा हुआ तो माँ की सब्जी, वगैरह काटने में मदद भी करने लगा...
उस समय गैस चूल्हे का इस्तेमाल नहीं होता था, तो कोयले की सिगडी इस्तेमाल की जाती थी; माँ जब रोटी बना रही होती तो उसके पास बैठकर, आटा मांगकर, कभी उस आटे से कछुआ बनाता और कभी चिडिया; फिर उसे सेंकने के लिए माँ से कहकर सिगडी के निचले हिस्से में रखवाता...जब वो सिक जाती तो अपनी बहन को खिलाता और पूछता कि कैसा बना है?
दादा जी के साथ बाज़ार से सब्जी भाजी खरीदने के लिए साथ जाने की जिद करता...ऐसे ही एक बार वो 4 साल की उम्र में वो उनके साथ हाट बाज़ार गया; दादा जी ने खाने के लिए समोसा खरीद कर दे दिया; जिसे हाथ में लिए वो घूम रहा था...उसके हाथ में समोसा देखकर एक कुत्ता उसके पीछे पड़ गया, कुत्ते को पास आता देखकर, वो डर गया और समोसा हाथ से झूट गया...कुत्ते ने समोसा तो गपक लिया पर जाने क्यों OP साथ छोड़ने का उसका मन नहीं हुआ; और उसके पीछे-पीछे हो लिया...दादा जी को ये साथ कुछ पसंद नहीं आया इसलिए उन्होंने कुत्ते को छड़ी से भगाना चाहा; और एक छड़ी रसीद भी कर दी, बस कुत्ता तो जैसे पागल ही हो गया; दादा जी का तो वो कुछ बिगाड़ नहीं पाया, पर बेचारे OP की छोटी-छोटे टांगो में अपने दांत गडा दिए;
ह्म्म्म्म, सारे बाज़ार में हल्ला हो गया, डॉक्टर दीदी के बच्चे को कुत्ते ने काट खाया, वगैरह वगैरह...खैर दादा जी उसे लेकर घर पहुंचे, माँ को पता चला तो परेशान हो गयी...उस समय कुत्ते के काटे पर १४ इंजेक्शन लगते थे और वो भी पेट पर...मुझे तो सोचकर ही डर लगता है, पर बेचारे OP को तो सच में लगे...
इस दौरान किसी पडोसी ने दादा जी को समझा दिया कि इस इंजेक्शन वगैरह से कुछ नहीं होने वाला; और सुना है कि वो कुत्ता पागल हो गया है, और अगर वो कुत्ता कहीं 10 दिन में मर जाए तो OP को कोई नहीं बचा सकता ..इतना सुनकर दादा जी सकते में आ गए और फिर कवायत शुरू हुई, OP को छोड़ कुत्ते का हाल- चाल लेने की...
सारा मोहल्ला उस कुत्ते की खोजबीन में लग गया...बड़ी मुश्किल से पता चला कि OP को काट खाने के बाद वो जनाब, पास वाली नदी के पास नहाते देखे गए हैं, जैसे किसी पार्टी में जाने की तैयारी हो...बस फिर क्या था...पूरा दल कुत्ते को पकड़ने के लिए चल पडा...खैर बड़ी मुश्किल से उसे पकड़ भी लिया गया...अब जद्दोजहद ये थी कि कुत्ते को कम से कम १० दिन तो ज़िंदा रखा जाए...लोगों ने सलाह दी कि दादा जी कुत्ते को घर ले जाएँ ताकि वो नज़रों के सामने रहे..वहां उसकी अच्छे तरीके से खिलाई पिलाई हो और उसका ख्याल रखा जा सके...
कुत्ते को घर लाया गया..आँगन में ही बाँध दिया गया...OP के कमरे की खिड़की से वो नीचे आराम से दिखाई दे जाता..OP बिस्तर पर पड़े-पड़े अपनी बहन से कुत्ते के हाल-चाल लेता...उसका बस चलता तो वो भी कुत्ते की टांग काट कर आता; पर ये उस समय तो मुमकिन ना था...उसे दादा जी पर भी बड़ा गुस्सा आ रहा था कि एक तो कुत्ते ने उसकी टांग काट खाई और एक वो हैं कि रोज़ उसे, दूध, अंडा, हड्डी खिला रहे हैं...और उसे खाने को खिचडी दी जाती है...OP ने मन ही मन कसम खाई एक बार ठीक हो गया तो रोज़ अच्छा अच्छा बनाऊंगा और खाऊँगा..
उस दिन का गुस्सा OP आज भी निकालता है, हाँ ये बात और है कि अब उसे गुस्सा नहीं प्यार आता है, और अब उसे खुद के लिए पकाने से ज्यादा मज़ा आता है किसी और के लिए पकाने में और उन्हें खिलाने में...
OP
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