कितनी आसानी से हम अपने घरों, अपने समाज में महिलाओं की भूमिका भूल जाते हैं. अब देखिये ना, मेरे पिताजी पिछले महीने अपने काम से रिटायर्ड हुए. इस मौके पर उनके सम्मान में बिदाई समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें उन्हें बुलाया गया, उनका सम्मान किया गया. वो इस सम्मान के लायक भी हैं. अपना काम जिम्मेदारी से किया उन्होंने. पर एक सवाल जो मेरे दिमाग में आता है वो ये कि क्या मेरी माँ के बिना मेरे पिताजी का उनके काम को जिम्मेदारी से निभा पाना संभव था? अगर मेरे पिता जी निश्चिन्तता के साथ खदानों में अपना काम कर पाते थे तो ज़रूर मेरी माँ ही उसका कारण रहीं होंगी. घर के कामों को, जिन्हें अमूमन काम ही नहीं समझा जाता, मेरी माँ ने बखूबी निभाया. हम ३ भाई बहनों को बड़ा किया, हमारा ख्याल रखा, घर से जुड़ी सारी जिम्मेदारियां निभाईं और अब भी निभा रही हैं. फिर क्यूँ उन्हें और उन जैसी अनेकों महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिलता?
Monday, March 7, 2011
क्यूँ?
कितनी आसानी से हम अपने घरों, अपने समाज में महिलाओं की भूमिका भूल जाते हैं. अब देखिये ना, मेरे पिताजी पिछले महीने अपने काम से रिटायर्ड हुए. इस मौके पर उनके सम्मान में बिदाई समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें उन्हें बुलाया गया, उनका सम्मान किया गया. वो इस सम्मान के लायक भी हैं. अपना काम जिम्मेदारी से किया उन्होंने. पर एक सवाल जो मेरे दिमाग में आता है वो ये कि क्या मेरी माँ के बिना मेरे पिताजी का उनके काम को जिम्मेदारी से निभा पाना संभव था? अगर मेरे पिता जी निश्चिन्तता के साथ खदानों में अपना काम कर पाते थे तो ज़रूर मेरी माँ ही उसका कारण रहीं होंगी. घर के कामों को, जिन्हें अमूमन काम ही नहीं समझा जाता, मेरी माँ ने बखूबी निभाया. हम ३ भाई बहनों को बड़ा किया, हमारा ख्याल रखा, घर से जुड़ी सारी जिम्मेदारियां निभाईं और अब भी निभा रही हैं. फिर क्यूँ उन्हें और उन जैसी अनेकों महिलाओं को उचित सम्मान नहीं मिलता?
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