Monday, June 27, 2016

खाली शाम

ब्रहमपुत्र, गणेश घाट, तेजपुर , असम
बाढ़ का पानी
पानी में‌ बहता हुआ
एक लाल रंग का बस्ता...

जाने किसका है?
शायद किसी बच्चे का हो
जिसने तैयार कर उसे
रात रखा हो सिराहने
और सुबह तक
नदी का पानी
इतना चढ़ आया हो
कि बस्ता बह गया
और वो बच्चा ...

नहीं-नहीं
ये ख्याल अच्छा नहीं
बाढ़ तो हर साल आती है
उस बच्चे की मां भी यह जानती होगी
ले गई होगी अपने बच्चों को वो
किसी सुरक्षित जगह
हमेशा की तरह
इस बार भी
बस बस्ता ले जाना भूल गई
शायद और भी बहुत कुछ छूट गया होगा

नदी के तेज पानी के साथ
ख्याल भी बह चले
तैर सकता तो
लाकर देखता
उस बस्ते के अंदर क्या है?
कुछ भीगी कापी-किताबें
एक सीली से पेंसिल शायद
या कहो
खाली ही होता
बस्ता
इस खाली शाम की तरह
 

योगा कर

योगा कर
भोगा कर
खुश रह
तेरे आका भी
खुश रहेंगे
बने रहेंगे ...

पर मेरे यार
भौंका मत कर
तेरे भौंकने से
आकाओं को डर लगता है
कि कहीं तू उनकी
हड्डियां ना चबा दे ...

इसीलिये तो, मेरे यार
योगा कर
भोगा कर
खुश रह
और
भूल जा
भौंकना ...

Wednesday, June 8, 2016

पुल का इंतजार

पुल इंतजार करता रहा
नदी नही आई

लेकिन अब उसका इंतजार
मिट गया है
आ गए हैं
नदी को पाटकर
पूर्ण विकसित आवासीय प्लाट

Tuesday, June 7, 2016

नंग-धड़ंग असभ्य

शहर के पार्क में
एक बच्चा खड़ा है
नंगा
पिछले कई दशकों से ...

पर सुना है
अब सभ्यतावादी उसे भी
सभ्य बनाना चाहते हैं
कपड़ा पहनाना चाहते हैं ...

उनके विकासवादी दोस्तों ने
ठेके भी दे दिये हैं
एक तो नई मूर्ति बनाने का
दूसरा पुरानी मूर्ति निकालने का
और तीसरा नई मूर्ति लगाने का ...

दोनों ही खुश हैं
हां, ये बात और है कि
पार्क में कच्ची मड़ई डालकर
रहने वाले पूरना के बच्चे
अब भी नंग-धड़ंग
असभ्य बने घूमते हैं ...