शहर के पार्क में
एक बच्चा खड़ा है
नंगा
पिछले कई दशकों से ...
पर सुना है
अब सभ्यतावादी उसे भी
सभ्य बनाना चाहते हैं
कपड़ा पहनाना चाहते हैं ...
उनके विकासवादी दोस्तों ने
ठेके भी दे दिये हैं
एक तो नई मूर्ति बनाने का
दूसरा पुरानी मूर्ति निकालने का
और तीसरा नई मूर्ति लगाने का ...
दोनों ही खुश हैं
हां, ये बात और है कि
पार्क में कच्ची मड़ई डालकर
रहने वाले पूरना के बच्चे
अब भी नंग-धड़ंग
असभ्य बने घूमते हैं ...
एक बच्चा खड़ा है
नंगा
पिछले कई दशकों से ...
पर सुना है
अब सभ्यतावादी उसे भी
सभ्य बनाना चाहते हैं
कपड़ा पहनाना चाहते हैं ...
उनके विकासवादी दोस्तों ने
ठेके भी दे दिये हैं
एक तो नई मूर्ति बनाने का
दूसरा पुरानी मूर्ति निकालने का
और तीसरा नई मूर्ति लगाने का ...
दोनों ही खुश हैं
हां, ये बात और है कि
पार्क में कच्ची मड़ई डालकर
रहने वाले पूरना के बच्चे
अब भी नंग-धड़ंग
असभ्य बने घूमते हैं ...
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