इस सोच का कोई अंत नहीं,
माना कि,
अभी बसंत नहीं.
पर समय तो चलता रहता है,
मौसम है,
बदलता रहता है.
हर मौसम की एक बारी है,
क्यूंकि समय पर कुछ उधारी है.
हाँ देर तो लगनी है थोड़ी,
जुड़ने देते हैं कड़ी-कड़ी,
देखें क्या है बनता,
खुली ज़ंजीर
या
हथकड़ी...
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