एक गरीब बाप के मरने पर उसके गरीब बेटे ने धार्मिक कर्मकांड करने के मन बनाया
और इस हेतु की पूर्ति के लिए उसने महापात्र को बुलवाया
(महापात्र: वो पंडित जो मरने पर दान लेता है)
पंडित ने पूछा, दान कितने का है बच्चा ?
लड़का बोला,
भगवन!
इंतजाम करके सब कुछ बचा है सवा रूपया
इसी को दान में चढाऊंगा
और अपने गरीब बाप की आत्मा को शान्ति दिलवाऊंगा.
पंडित ने दी एक कुटिल मुस्कान
बोला
अरे गरीब बाप के बेटे महान;
जरा इस बात पर विचार कर
की ऐसा कभी हुआ है भला
जो थर्ड क्लास की टिकेट ले
तू एसी में हो चला.
याद कर जैसे एसी के द्वार पर टीसी होते हैं खड़े
ठीक उसी तरह तेरे बाप की आत्मा और स्वर्ग के बीच हम हैं खड़े
तू जब तक हमें प्रशन्न नहीं करेगा
तेरा बाप स्वर्ग के दरवाज़े पर ही खड़ा रहेगा.
इस सवा रूपया से तेरे बाप की आत्मा शान्ति नहीं पाएगी
अरे वो स्वर्ग क्या नरक में भी घुसने नही पाएगी.
लड़का बोला यजमान,
आपको मेरी स्थिति का नही है भान;
मैं गरीब हूँ, गरीबी में पला बढ़ा हूँ,
आज आपके सामने ये सवा रुपया लिए खड़ा हूँ.
पैसों के अलावा हर चीज़ से आपको प्रशन्न करवाऊँगा,
भले ही कल के लिए घर में न हो अन्न, पर आपको स्वादिष्ट भोजन करवाऊंगा
पहन रहा हूँ सालों से ये फटी हुई धोती, पर आपको एक नयी जोड़ी दिलवाऊंगा.
पंडित हंसा, बोला;
पुत्र तू बहुत है भोला, बिल्कुल ही नादान,
इस देश के संस्कृति से बिल्कुल ही अनजान,
सिर्फ पैसों का ही दान कर सकता है तेरे बाप का कल्याण
देता है तो दे वरना मैं करता हूँ प्रस्थान.
लड़का गिड़गिड़ाया, रोया, चिल्लाया
पर पंडित ने एक ना सुनी और वापिस चला आया.
पर लड़का था अचरज में बड़ा,
सोच रहा था खड़ा खड़ा,
कि बाप ने तो बताये थे कुछ और ही नियम संसार के,
जो कि जाने थे उसने इन्ही समाज के ठेकेदारों से.
कह गया था जाते जाते
कि बेटा यह संसार मिथ्या है, छलावा है,
सच नही है, माया है.
बेटा, सच तो है दूर कहीं,
स्वर्ग नरक भी हैं वहीँ.
वहां तो हिसाब ही अलग है,
यहाँ जो कष्ट भोगता है, उसे मिलता वहां स्वर्ग है,
यहाँ पाकर भी कोई कुछ नही है पाता,
जिसने यहाँ मज़े उड़ायें हैं, उसने वहां नरक के कष्ट उठाये हैं.
पर आज ये समाज के ठेकेदार एक नै बात ही बतला रहे हैं,
कि वो यहीं धरती से ही स्वर्ग-नरक चला रहे हैं.
सोच रहा था वो,
दिमाग में प्रश्नं उठ रहे थे बड़े,
कि जब होना है सब यहीं से संचालित,
तो स्वर्ग-नरक क्यों इतनी दूर हैं खड़े?
क्या सच-मुच हैं वो दूर कहीं?
क्या ये दुनियां ही स्वर्ग-नरक नहीं?
ऐसे कितने ही सवाल
उसके दिमाग में हलचल मचा रहे थे.
जाने उसे उसके सवालों के जवाब मिले या नहीं?
पर आस-पास खड़े लोग सब कह रहे थे यही,
कि जो उसके पास पैसा होता,
तो बाप उसका स्वर्ग के दरवाजे पर ना खड़ा होता.
तेरा बाप स्वर्ग के दरवाज़े पर ही खड़ा रहेगा.
इस सवा रूपया से तेरे बाप की आत्मा शान्ति नहीं पाएगी
अरे वो स्वर्ग क्या नरक में भी घुसने नही पाएगी.
लड़का बोला यजमान,
आपको मेरी स्थिति का नही है भान;
मैं गरीब हूँ, गरीबी में पला बढ़ा हूँ,
आज आपके सामने ये सवा रुपया लिए खड़ा हूँ.
पैसों के अलावा हर चीज़ से आपको प्रशन्न करवाऊँगा,
भले ही कल के लिए घर में न हो अन्न, पर आपको स्वादिष्ट भोजन करवाऊंगा
पहन रहा हूँ सालों से ये फटी हुई धोती, पर आपको एक नयी जोड़ी दिलवाऊंगा.
पंडित हंसा, बोला;
पुत्र तू बहुत है भोला, बिल्कुल ही नादान,
इस देश के संस्कृति से बिल्कुल ही अनजान,
सिर्फ पैसों का ही दान कर सकता है तेरे बाप का कल्याण
देता है तो दे वरना मैं करता हूँ प्रस्थान.
लड़का गिड़गिड़ाया, रोया, चिल्लाया
पर पंडित ने एक ना सुनी और वापिस चला आया.
पर लड़का था अचरज में बड़ा,
सोच रहा था खड़ा खड़ा,
कि बाप ने तो बताये थे कुछ और ही नियम संसार के,
जो कि जाने थे उसने इन्ही समाज के ठेकेदारों से.
कह गया था जाते जाते
कि बेटा यह संसार मिथ्या है, छलावा है,
सच नही है, माया है.
बेटा, सच तो है दूर कहीं,
स्वर्ग नरक भी हैं वहीँ.
वहां तो हिसाब ही अलग है,
यहाँ जो कष्ट भोगता है, उसे मिलता वहां स्वर्ग है,
यहाँ पाकर भी कोई कुछ नही है पाता,
जिसने यहाँ मज़े उड़ायें हैं, उसने वहां नरक के कष्ट उठाये हैं.
पर आज ये समाज के ठेकेदार एक नै बात ही बतला रहे हैं,
कि वो यहीं धरती से ही स्वर्ग-नरक चला रहे हैं.
सोच रहा था वो,
दिमाग में प्रश्नं उठ रहे थे बड़े,
कि जब होना है सब यहीं से संचालित,
तो स्वर्ग-नरक क्यों इतनी दूर हैं खड़े?
क्या सच-मुच हैं वो दूर कहीं?
क्या ये दुनियां ही स्वर्ग-नरक नहीं?
ऐसे कितने ही सवाल
उसके दिमाग में हलचल मचा रहे थे.
जाने उसे उसके सवालों के जवाब मिले या नहीं?
पर आस-पास खड़े लोग सब कह रहे थे यही,
कि जो उसके पास पैसा होता,
तो बाप उसका स्वर्ग के दरवाजे पर ना खड़ा होता.
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