रात भर सिसकती रही रात
अब भी सुबह के माथे पर कोहरा टपक रहा है
धुंध ने सब कुछ ढँक दिया है
सुंदर-कुरूप,
भला-बुरा ,
सही-ग़लत,
कुछ भी नही दीखता
कुछ ही दूरी पर
एक पंक्षी एक सूखे पेड़ की टहनी पर बैठा
जाने क्या कयास लगा रहा है
वो भी शायद उतना ही दूर देख पा रहा है
जितना की मै
उड़ने की हिम्मत शायद अभी दोनों में ही नही.
अब भी सुबह के माथे पर कोहरा टपक रहा है
धुंध ने सब कुछ ढँक दिया है
सुंदर-कुरूप,
भला-बुरा ,
सही-ग़लत,
कुछ भी नही दीखता
कुछ ही दूरी पर
एक पंक्षी एक सूखे पेड़ की टहनी पर बैठा
जाने क्या कयास लगा रहा है
वो भी शायद उतना ही दूर देख पा रहा है
जितना की मै
उड़ने की हिम्मत शायद अभी दोनों में ही नही.
No comments:
Post a Comment