Wednesday, December 31, 2014

धुंध

रात भर भीगती रही रात
और अब भी सुबह के माथे पर कोहरा टपक रहा है...

धुंध ने सब कुछ ढँक दिया है
सुंदर-कुरूप, भला-बुरा
सही-ग़लत
कुछ भी नही दीखता...

कुछ ही दूरी पर
एक पंक्षी एक सूखे पेड़ की टहनी पर बैठा
जाने क्या कयास लगा रहा है
वो भी शायद उतना ही दूर देख पा रहा है
जितना की मैं...

उड़ने की हिम्मत शायद अभी दोनों में ही नही...

No comments:

Post a Comment