Sunday, December 30, 2012

एक बात, कुछ सवाल

नाम अगर राम हो तो कोई भगवान् नहीं बन जाता,
और फिर राम सिंह तो इंसान भी नहीं है,
जानवर है।

कम नहीं हैं सोचने वाले कि 
क्यों उसने उसे चांटा मारा, काटा?
अगर ना करती ऐसा तो, 
वो ऐसी दरंदगी पर ना उतरता।
बलात्कार ही होता ना,
पर जान से तो रह जाती,
शायद ज़िंदा बच जाती।
(जैसे बलात्कार कम दरंदगी है)

पर आदर्श पुरुष राम ने भी तो सिर्फ  एक बात पर सीता को घर से निकाल दिया था।
और उसके साथ तो बलात्कार हुआ था, 
वो कैसे रह पाती अपने घर में,
जी पाती इस रामपरायण समाज में,
अगर ज़िंदा बच भी जाती तो।

पर सवाल बस इतना नहीं है, 
सवाल और भी हैं।
आखिर पुरुषों का वो सम्मेलन ही क्यूँ हो जिसमें एक महिला की बोली लगे,
ऐसा समाज ही क्यूँ हो जिसमें ऐसा संभव हो।
क्या इस समाज को ही बदलने की ज़रुरत नहीं ?
पर कैसे बदलेगा ये समाज?
और किस दिशा में?
कौन बदलेगा इसे?

क्या कोई कृष्ण या फिर कोई राम इसे बदलेगा?
क्या भगवान् भरोसे चल रहा ये समाज भगवानों से बदलेगा ?
क्या इस समाज के भगवान् भी बदलेंगे?
क्या इस समाज के इंसान भी बदलेंगे?

Monday, August 20, 2012

दो शिक्षकों का संवाद


शि१: अब तो सरकारी स्कूलों में सिर्फ गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के ही बच्चे पढ़ते हैं.
शि२: जो न क्लास में आते हैं और नहीं ट्यूशन पढने.
शि१: और जब फेल हो जाते हैं  तब उनका दिमाग खुलता है.
         इस बार तो हमारे स्कूल में 34 बच्चों की सप्लीमेंट्री थी (शायद हाई स्कूल में).
         सप्लीमेंट्री परीक्षा में 29 बैठे, जिसमें से 18 को मैंने पास करवा दिया.
शि२: बहुत ज्यादा को करवा दिया.
शि१: हाँ थोडा कष्ट हुआ 3-4 बार अनुपपुर आना जाना पड़ा.
        किसी से 500 लिए तो किसी से 800.
        जो देर से आया तो उसके लिए रेट बढ़ता गया.
        बात कर ली थी, हमें ही कॉपी और रिजल्ट बनाने को दे दिया.
        कुल  9000 इकठ्ठा हुए, 1500 वहां पहुचाये.
शि२: बड़े कम लोग चढ़े यहाँ से ट्रेन में 
शि१: अरे आगे लोकल निकली हैं ना. इसीलिए.
        लोगों का क्या है जो ट्रेन मिली चढ़ गए. कौन सा टिकेट लेना है.

Thursday, January 19, 2012

सरल है जीवन

सरल है जीवन,
क्यों कठिन बनाते हो?

तारों भरा आसमान देखा है कभी?
वो हर किसी के लिए जगमगाता है,
हर किसी के लिए होता है,
मानो सारी दुनिया की साझी दौलत हो,
विरासत हो,

तुम क्यों,
दुनिया की साझी दौलत को,
अपनी तिजोरी में कैद कर लेना चाहते हो?

सरल है जीवन,
क्यों कठिन बनाते हो?

सांस तो लेते होगे?
दिल भी धड़कता होगा,
नर्म हवाओं ने तुम्हारा जिस्म
भी छुआ होगा,
वो मज़हब देखकर,
जिस्म में नहीं आती हमारे.

तुम क्यों,
नाम पे मज़हब के
किसी की साँसे रोकते हो,
रुकवाते हो?

सरल है जीवन,
क्यों कठिन बनाते हो?


(लोकेश के द्वारा)


किसी से (Originally जरा सी) मोहब्बत हुई  है कभी? 
वो  हमारी जीवन  उर्जा  है, 
मोहब्बत जो  सभी को होती है, 
मानो सब आपस मे  सूत्र से बंधे हों, 
एक संरचना मे, 

तुम क्यों,
उस सरंचना  को,
नियमो  से तोड़ देना चाहते हो? 

सरल है जीवन,
क्यों कठिन बनाते हो? 

संवाद प्रकाश के साथिओं के साथ कभी कुछ लिखने की योजना बनाई थी..वही..


Tuesday, January 3, 2012

अनंत सोच

इस सोच का कोई अंत नहीं,
माना कि,
अभी बसंत नहीं.
पर समय तो चलता रहता है,
मौसम है, 
बदलता रहता है.
हर मौसम की एक बारी है,
क्यूंकि समय पर कुछ उधारी है.
हाँ देर तो लगनी है थोड़ी,
जुड़ने देते हैं कड़ी-कड़ी,
देखें क्या है बनता,
खुली ज़ंजीर 
या
हथकड़ी...