नाम अगर राम हो तो कोई भगवान् नहीं बन जाता,
और फिर राम सिंह तो इंसान भी नहीं है,
जानवर है।
कम नहीं हैं सोचने वाले कि
क्यों उसने उसे चांटा मारा, काटा?
अगर ना करती ऐसा तो,
वो ऐसी दरंदगी पर ना उतरता।
बलात्कार ही होता ना,
पर जान से तो रह जाती,
शायद ज़िंदा बच जाती।
(जैसे बलात्कार कम दरंदगी है)
पर आदर्श पुरुष राम ने भी तो सिर्फ एक बात पर सीता को घर से निकाल दिया था।
और उसके साथ तो बलात्कार हुआ था,
वो कैसे रह पाती अपने घर में,
जी पाती इस रामपरायण समाज में,
अगर ज़िंदा बच भी जाती तो।
पर सवाल बस इतना नहीं है,
सवाल और भी हैं।
आखिर पुरुषों का वो सम्मेलन ही क्यूँ हो जिसमें एक महिला की बोली लगे,
ऐसा समाज ही क्यूँ हो जिसमें ऐसा संभव हो।
क्या इस समाज को ही बदलने की ज़रुरत नहीं ?
पर कैसे बदलेगा ये समाज?
और किस दिशा में?
कौन बदलेगा इसे?
क्या कोई कृष्ण या फिर कोई राम इसे बदलेगा?
क्या भगवान् भरोसे चल रहा ये समाज भगवानों से बदलेगा ?
क्या इस समाज के भगवान् भी बदलेंगे?
क्या इस समाज के इंसान भी बदलेंगे?