Thursday, December 19, 2019

एक पिटता हुआ ख्वाब ... एक लड़ता हुआ ख्वाब

मैं कुछ नहीं
हूं सब कुछ बन जाना चाहता,
मुझे ये पूछकर मत बांधों कि
हूं मैं क्या बन जाना चाहता

और सबसे पहले तो
मत बांटो मुझे हिन्दू-मुसलमाँ में
मैं इंसान हूं, हूं इंसान रहना चाहता

मेरे भगवान को जरूरत नहीं
तुम्हारे मंदिरों-मस्जिदों की
वो मेरे दिल में रहता है
मैं उसे, हूं वहीं रखना चाहता

इक छात्
कहते हो तुम कि
हूं भविष्य देश का
मैं सड़कों पर उतर आया हूं कि
हूं देश बचाना चाहता   

हूं वो ख्वाब
जो पिट रहा है
पुलिस की लाठी से
पर जिद पर अड़ा है कि
टूटना नहीं चाहता

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