आज मेरे पापा रिटायर्ड हो रहे हैं, पिछले ३८-४० सालों से कोयले की खदानों में काम करने के बाद. बड़े ही मेहनती व्यक्ति हैं और काम में माहिर. जाने कैसे वो अपना वक़्त बिताएंगे अब? उम्मीद है अच्छे से ही. मेरी शुभकामनाएं उन्हें.
मेरे एक बहुत अच्छा दोस्त है विश्वजीत. जितना अच्छा इंसान है उतना ही अच्छा लिखता है. अकसर बांटता रहता है मुझसे जो लिखता है.
मेरे एक बहुत अच्छा दोस्त है विश्वजीत. जितना अच्छा इंसान है उतना ही अच्छा लिखता है. अकसर बांटता रहता है मुझसे जो लिखता है.
एक दफा उसने लिखा:
कई बार जब पेड़ की टहनियां बढ़ जाती हैं तो भूल जाती हैं उस पेड़ को जहाँ से वो पनपी..बड़ी हुई..और फल देने लगी..उन टहनियों को आज भी वो पेड़ अपने सीने पे ढोए खड़ा है..
अक्सर जब वो दफ्तर से आते ,
हम झाडियों में गेंद खोजा करते,
माँ वहीँ दरवाजे पर ओट लगाये,उन्हें निहारती रहती,,,
हम झाडियों में गेंद खोजा करते,
माँ वहीँ दरवाजे पर ओट लगाये,उन्हें निहारती रहती,,,
वो कभी हमे गोद में उठा लेते ,
कभी प्यार से पीठ थपथाते ,,
कभी माँ से शरारत करते ,
तो कभी क्यारियों में पौधों की कुदाई करवाते ,,
कई दफा वो दिन भर के थके हमसे बात न करते,
माँ हमे इशारे से समझती,और हम उन्हें अकेला छोड़ देते,,,
हमारी नयी किताबो पर जिल्द चढाते ,,पहले पन्ने पर हमारा नाम लिखते ,,
अच्छा पढने पर ईनाम का लालच देते,
गलतियों पर डाटते,
बीमारी में माथा चूमते,हथेलियों को सहलाते ,,,,,
हम माँ के साथ उनकी थाली लगाते,
बारी-बारी से हम माँ की सेकी रोटियां उन तक पहुचाते ,,,,
माँ के पल्लू से वो हाथ पोछते ,,,
बिस्तर पर कुछ देर हमसे बातें करते ,,माँ को दफ्तर के कुछ किस्से सुनाते ,,,,
कई साल बीत गए ...........
अब हम झाडियों में गेंद नही खोजा करते,
माँ अब भी दरवाजे पर ओट लगाये ,उन्हें निहारती है,,,
अब हम झाडियों में गेंद नही खोजा करते,
माँ अब भी दरवाजे पर ओट लगाये ,उन्हें निहारती है,,,
वो आज मिलते....तो, उनसे लिपटकर रोता,
उनकी हथेलिया चूमता ........
पूछता,,,,,,,,,,,"कैसे है पिताजी?"
उसकी इस अभिव्यक्ति ने मेरे भी मन में छुपी यादों को हिलाया.
याद है मुझे वो पापा का चांटा
जब स्कूल से आते वक्त
मैं अपने दोस्त समीर के साथ कहीं घूमने चला गया था
बड़ी देर तक जंगलों में घूमते हुए जब हम रोड पर पहुँचे,
तो सामने ही वो साइकिल पर खड़े थे
बड़ा बुरा लगा था मुझे
उस कदर रोड पर चांटा खाना
याद है वो शाम भी
जब अंधेरे में देर तक क्रिकेट खेलने के कारण
घर से बाहर निकाल दिया था उन्होंने
पडोस के दद्दा ने बड़ी मुश्किल से
घर के अन्दर करवाया था मुझे
याद है मुझे एक बार की बात
कि जब वो नहाने गए थे
और मैंने बाथरूम का दरवाजा धक्का देकर
खोल दिया था
याद नही इस बात पर मुझे मार पड़ी थी या नही
याद है मुझे कैसे एक बार वो दिवाली पर बीमार थे
और हम लोगों ने पटाखे नही फोडे थे
उदास से गुमसुम बैठे हुए थे
तभी उनके दोस्त, कुग्गी चाचा आए थे
और तब हमें लगा था कि आज दिवाली है.
वो इंग्लिश मीडियम स्कूल का टेस्ट
जिसे दिलवाने के लिए
मुझे वो साइकिल पर बैठाकर लेकर गए थे
जब और लोगों की गाड़ियों के बीच अपनी साइकिल खड़ी की उन्होंने
तब उनकी आंखों में आए अजीब से भाव
मुझे अब भी याद है
उस रात मैं उनसे चिपक कर सोया था
कितना अच्छा लगता था मुझे
जब वो मेरे सर पर अपना हाथ फेरते थे.
मेरे कान में अपनी ऊँगलियाँ फिराते थे
मुझे लोरियां सुनाते थे.
मुझे याद है वो एक शाम
जब मैं और वो साथ में मिलकर कितना रोये थे
उन्होंने अपने बचपन के दिनों की बात बताईं थी
कि कैसे कभी खाने में सब्जी न होने पर
नमक वाले पानी के साथ रोटियां खायीं थी
मुझे याद है उनकी वो साइकिल
जिसके चैनकवर पर
कर्म ही पूजा है
ऐसा लिखा रहता था
वो हमे अपने हाथों से
ला लाकर रोटियां खिलाते थे
मेरे लिए अपने हाथों से कटोरे में
दाल-चावल, सब्जी और गर्म घी मिलाते थे.
उस दाल चावल का स्वाद
मुझे अब भी है याद.
जब स्कूल से आते वक्त
मैं अपने दोस्त समीर के साथ कहीं घूमने चला गया था
बड़ी देर तक जंगलों में घूमते हुए जब हम रोड पर पहुँचे,
तो सामने ही वो साइकिल पर खड़े थे
बड़ा बुरा लगा था मुझे
उस कदर रोड पर चांटा खाना
याद है वो शाम भी
जब अंधेरे में देर तक क्रिकेट खेलने के कारण
घर से बाहर निकाल दिया था उन्होंने
पडोस के दद्दा ने बड़ी मुश्किल से
घर के अन्दर करवाया था मुझे
याद है मुझे एक बार की बात
कि जब वो नहाने गए थे
और मैंने बाथरूम का दरवाजा धक्का देकर
खोल दिया था
याद नही इस बात पर मुझे मार पड़ी थी या नही
याद है मुझे कैसे एक बार वो दिवाली पर बीमार थे
और हम लोगों ने पटाखे नही फोडे थे
उदास से गुमसुम बैठे हुए थे
तभी उनके दोस्त, कुग्गी चाचा आए थे
और तब हमें लगा था कि आज दिवाली है.
वो इंग्लिश मीडियम स्कूल का टेस्ट
जिसे दिलवाने के लिए
मुझे वो साइकिल पर बैठाकर लेकर गए थे
जब और लोगों की गाड़ियों के बीच अपनी साइकिल खड़ी की उन्होंने
तब उनकी आंखों में आए अजीब से भाव
मुझे अब भी याद है
उस रात मैं उनसे चिपक कर सोया था
कितना अच्छा लगता था मुझे
जब वो मेरे सर पर अपना हाथ फेरते थे.
मेरे कान में अपनी ऊँगलियाँ फिराते थे
मुझे लोरियां सुनाते थे.
मुझे याद है वो एक शाम
जब मैं और वो साथ में मिलकर कितना रोये थे
उन्होंने अपने बचपन के दिनों की बात बताईं थी
कि कैसे कभी खाने में सब्जी न होने पर
नमक वाले पानी के साथ रोटियां खायीं थी
मुझे याद है उनकी वो साइकिल
जिसके चैनकवर पर
कर्म ही पूजा है
ऐसा लिखा रहता था
वो हमे अपने हाथों से
ला लाकर रोटियां खिलाते थे
मेरे लिए अपने हाथों से कटोरे में
दाल-चावल, सब्जी और गर्म घी मिलाते थे.
उस दाल चावल का स्वाद
मुझे अब भी है याद.