Sunday, February 27, 2011

चाँद की नाक बह रही है

शाम को लेटा तो आँख लग गई,
सपने में जब अचानक आसमान की तरफ नज़र गई
तो देखा कि चाँद की नाक बह रही है.
सोचा, पोंछ दूं.

जेब से रूमाल निकाल कर
जैसे ही चाँद की तरह हाथ बढ़ाया,
ना जाने कहाँ से दो पंछियों का एक जोड़ा
आसमान में प्रकट हुआ और
मेरे हाथों से रूमाल लेकर उड़ गया.
उनके इस करतब से मैं अचरज़ में पड़ गया.

पर चाँद की नाक अब भी बह रही थी.
मैंने आसमान में तैर रहे बादलों से कहा
कि वो बारिश कर दें,
पानी से धोकर,
चाँद की नाक साफ़ कर दें.

वो बोले ये चाँद बड़ा बदमाश है.
हमारे मना करने पर भी रात भर,
पेड़ों से कच्चे आम तोड़-तोड़ कर
खाता रहता है.
अब उसकी नाक नही बहेगी तो और क्या होगा?
पहले उससे बोलो कि आज रात आम ना खाए
तब हम उसकी नाक साफ़ कर देंगे.

मैंने चाँद से बादलों की बात कही.
चाँद बोला,
मेरी नाक बहने से तुम क्यों परेशान हो.
बहती है तो बहने दो.

तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई और
मेरी नींद टूट गई,
जो आया था उसे जल्दी से टरका कर,
चाँद और आमों के बारे में सोचते हुए,
दोबारा सोने की कोशिश की,
पर कमबख्त नींद नही आयी.
बेमन से ऊंघते हुए,
कमरे से बाहर निकल कर खड़ा हो गया.

कमरे के पास ही लगे
आमों से लदे पेड़ पर नज़र गई
और उसकी पत्तियों के झुरमुट से झाँक रहे
पंचमी के चाँद पर भी.

मुझे वो मुस्कुराता हुआ सा लगा
और उसकी तीखी नाक भी दिखी.
पर इतनी दूर से पता नही कर पाया कि
वो आम खा रहा था या नही....


ये कविता एकलव्य समूह की बच्चों की मासिक पत्रिका चकमक में "सपने में चाँद" शीर्षक से भी छपी थी पिछले दिनों.

4 comments:

  1. सपने
    हर किसी को नहीं आते
    बेजान बारूद के कणों में
    सोयी आग को सपने नहीं आते
    बदी के लिए उठी हुयी
    हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
    शेल्फों में पड़े इतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते

    सपनों के लिए लाजिमी है
    झेलने वाले दिलों का होना
    सपनों के लिए
    नींद की नज़र होनी लाजिमी है

    सपने इसलिए
    हर किसीको नहीं आते

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  2. पाश को पढ़कर पता चला कि मुझे सपने क्यों नहीं आते :|

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  3. @ Nirmali

    तुमने पाश की बात की और साथ ही सपनों की तो ये पढ़ो..

    सबसे खतरनाक होता है
    मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
    पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
    गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

    बैठे सोये पकडे जाना - बुरा तो है
    डर से चुप रह जाना - बुरा तो है
    सबसे खतरनाक नहीं होता .

    कपट के शोर में
    सही होने पर दब जाना, बुरा तो है
    किसी जुगनू की लौ में पढना - बुरा तो है
    किटकिटा कर समय काट लेना - बुरा तो है
    सबसे खतरनाक नहीं होता .

    सबसे खतरनाक होता है
    बेजान शांति से भर जाना
    ना होना तड़प का, सब सहन कर लेना
    घर से निकलना काम पर
    और काम से घर लौट आना,
    सबसे खतरनाक होता है
    हमारे सपनो का मर जाना.

    सबसे खतरनाक वो घडी होती है
    तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
    तुम्हारी नज़र के लिए रुकी होती है .

    सबसे खतरनाक वो आँख होती है
    सब कुछ देखते हुए भी जो ठंडी बर्फ होती है
    जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
    जो चींजों से उठती अंधेपन की भाप पर फिसल जाती है
    जो नित दिख रही साधारणता को पीती हुई
    एक बेमतलब दोराह की भूल-भुलैया में खो जाती है.

    सबसे खतरनाक वो चाँद होता है
    जो हर कत्ल काण्ड के बाद
    सूने आँगन में निकलता है
    पर तुम्हारी आँखों में मिर्चों सा नहीं चुभता.

    सबसे खतरनाक वो गीत होता है
    तुम्हारे कानों तक पहुचने के लिए
    जो विलाप लांघता है
    डरे हुए लोगों के दरवाजों सामने
    जो नसेड़ी की खांसी खांसता है.

    सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
    जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाता है.
    और उसकी मरी हुई धुप की कोई फांस
    तुम्हारे जिस्म के पूरब में उतर जाए.

    मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
    पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
    गद्दारी लोभ की मुठ्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती

    -शहीद अवतार सिंह पाश
    (एक लम्बी कविता से)

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  4. घर गया था पिछली बार तो पिता जी ने एक शेर सुनाया था

    खूबसूरत नजारों की बात करता है..
    वो पतछड़ में फूलों की बात करता है..
    एक ऐसे दौर में जब नींद बहुत मुश्किल है..
    अजीब शख्स है..ख्वाबों की बात करता है..

    शायद पाश के लिए ही कहा गया है ये शेर.....

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