बाबा की पोटली या पोटली बाबा की... जो भी कह लो...
Friday, August 22, 2014
आखिर इन दिनों बनारसी सो क्यों नहीं पाते?
मौका मिला है तो एक चुटकी ले ही ली जाए।
ज़रा सोचिये, आप बनारस में हों। गरमी की एक रात आपने उनींदी ही बिताई है क्यूंकि बिजली रात भर आंख-मिचौली खेलती रही और फिर सुबह जैसे ही आप अखबार की हेडलाईन देखते हैं, बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा मिलता है।
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