Sunday, August 24, 2014

मूड

मूड तो सुबह-सुबह ही खराब हो गया
प्रोफ़ेसर साहब का
जब गली के कुत्तों ने सैर के दौरान
दौड़ा दिया उन्हें।

और फ़िर दिन भर उन ठंडी मीटिंगों
में‌ बैठे रहे
जिनमें सिर्फ़ दो ही चीजें गर्म होती हैं:
एक चाय और दूसरी
VC की फटकार।
मूड और बिगड़ गया,
इतना कि class में बच्चों के
खिलखिलाते-जगमगाते चेहरे देख
कोफ़्त होने लगी।

शाम को घर पहुंचे
बीवी के हाथों की मीठी चाय की आस में।
पर बीवी नदारद,
लौटी नहीं‌ थी पार्क से
जहां‌ बच्चों को लेकर गई थी।
मूड का तो पूछो मत,
सत्यानाश हो गया।

गुस्से में‌ निकले घर से,
कुछ दूर ही
एक नई बन रही बिल्डिंग के वर्कर,
काम के बाद एक झुंड में कबड्डी खेल रहे थे।
जाने क्या हुआ,
प्रोफ़ेसर साहब जोरों‌ से भौंकने लगे,
और गुर्राते हुए दौड़ पड़े उनकी तरफ़।

सुबह और शाम में बस इतना ही फ़र्क रह गया
कि सुबह एक के पीछे झुंड था
और शाम को झुंड के पीछे एक।

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