Wednesday, August 27, 2014

सोने का पिंजरा

इतना सुंदर हास्टल,
इतने सुंदर कमरे,
इतना सुंदर बागीचा,
इतना सुंदर खेल का मैदान,
इतनी सारी सुविधायें,
फिर भी जला दिया।

अरे, क्या जला दिया सर?

तुम्हें नहीं‌ पता? कहां‌ रहते हो?
इस संस्थान की तो चिंता ही नहीं‌ तुम्हें,
जाने क्या-क्या होता रहता है,
पर तुम होकि बस salary उड़ा रहे हो।
देखो तो कितना माहौल बिगड़ गया है।
कल रात किसी ने हास्टल वार्डन की तस्वीर जला दी।

अरे ये तो बहुत बुरा हुआ सर? लेकिन किसने जलाया और क्यूं?

इन बदमाश लड़कों‌ ने ही जलाया होगा और क्या?
हुल्लडबाज़ी, बदमाशी के सिवा आता ही क्या है?

पर सर तस्वीर जलाई क्यूं होगी?
और जरा ये तो बताईये कि वार्डन की तस्वीर हास्टल में लगवाई क्यूं गई थी?
हास्टल तो छात्रावास हुआ ना, वार्डनावास थोड़े ही।
छात्रों की तस्वीर होती तो बात भी थी, वार्डन की क्यूं?

अरे भाई ये फ़ालतू के सवाल मत पूछो,
इतना घिनौना अपराध हुआ है, उसका सोचो।
लड़कों ने वार्डन की तस्वीर जलाई है,
वार्डन एक शिक्षक भी तो है।
सोचो तो कितना बड़ा अपमान है?

हां, सर बात तो सही है आपकी, अपमान तो है।
पर ऐसे अपमान तो हम-आप आये दिन करते रहते हैं।

क्या बक रहे हो?

अरे सर देखिये ना, हम उस नेत्री की प्रतिमा का
अपमान रोज करते हैं जिसे कुछ सालों‌ पहले ही संस्थान में‌ लगाया गया था।
वो तो लड़ी थीं समाज में महिलाओं की बराबरी और आज़ादी के लिये,
हम एक तरफ़ तो उनकी प्रतिमा पर माला चढ़ाते हैं
और दूसरी तरफ़
हास्टलों में रहने वाले लड़के-लड़कियों के लिये ऐसे अलग-अलग नियम बनाते हैं
जो लड़कियों के हक में नहीं जाते।
ये अपमान तो कहीं ज्यादा बड़ा हुआ।

अरे भाई, तुम अजब इंसान हो,
कहां‌ की बात कहां जोड़ते हो।
बात लड़कों की हो रही है और
तुम लड़कियों को ले आये।
जरा सोचो,
कल को कोई तुम्हारी तस्वीर जलाये तो कैसा लगेगा तुम्हे?

हां सर, खराब तो लगेगा,
लेकिन मेरे लिये सजा देने से कहीं‌ ज्यादा
बड़ा सवाल होगा कि आखिर ऐसा हुआ क्यूं?
आपने वो टैगोर की कहानी पढ़ी है क्या,
सोने का पिंज़रा और तोते वाली।
जिसमें एक जंगली तोते के जंगलीपने से नाखुश राजा
उसे शिक्षित करने के लिये,
ताम-झाम के साथ एक पूरी व्यवस्था बनाता है,
सोने का पिंजरा बनवाता है,
महापंडितों की एक पूरी फ़ौज उस एक तोते को
शिक्षित करने के लिये के लिये तैनात करवाता है।
तोता अपना जंगलीपन तो भूल जाता है और
साथ ही सांस लेना भी।
एक दिन मरा पाया जाता है,
अपने उसी सोने के पिंजरे में।

पर सर, टैगोर का दौर गया,
अगर आज ये कहानी लिखी जायेगी तो,
तोता अंत में‌ मरेगा नहीं,
और अगर मरा भी तो अकेला नहीं।
आपने अमरीकी स्कूलों-कालेजों में
हुई उन घटनाओं के बारे में तो पढ़ा ही होगा,
जिनमें स्कूल के ही छात्रों ने
बंदूकें उठा,
जाने कितने ही अन्य छात्रों व शिक्षकों की
हत्या कर दी और फिर खुद को भी गोली मार दी।
सोचिये जरा, क्या मानसिक हालत रही होगी उनकी,
जो ऐसा किया।
ज़ाहिर है उनका उस व्यवस्था से विश्वास उठ गया होगा,
आशा की कोई किरण ना होगी,
अपना गुस्सा निकालने का और कोई रास्ता उन्हें सुझा ना होगा,
जो ये सब कर गये वो।
सजा तो खुद को दे ही दी उन्होंने,
अब जो सवाल बचता है वो ये कि
आखिर क्यूं?

अब सर, जरा हम अपनी व्यवस्था के बारे में‌ भी सोच लें,
हम भी ज़रा ये सवाल पूछ लें कि
आखिर क्यूं?
क्या यहां‌ छात्रों के पास अपना गुस्सा (जोकि बहुत स्वभाविक चीज है)
निकालने का कोई ज़ायज रास्ता है।
और अगर है भी तो क्या उनकी बात सुनी जाती है?
अगर ऐसा रास्ता है और उनकी बात सुनी जाती है
तो फ़िर ज़रूर ही उन लोगों को सजा दी जानी चाहिये,
वरना तो सजा देकर कुछ फ़ायदा नहीं,
क्यूंकि इससे गुस्सा कम नहीं होगा
बढ़ेगा ही।
और गुस्सा निकलेगा
तो सोने के पिंजरे को नुकसान भी होगा।

http://www.parabaas.com/translation/database/translations/stories/gRabindranath_parrot.html

 

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