पहला
"अरे भैया, पिचकू है क्या?"
"पिच्च्च्क्कू! ये क्या होता है?"
"अरे ईमली की चटनी।"
"नहीं भईया, वो तो नहीं है। ईमली है कच्ची। सस्ती भी पड़ेगी। दे दें?"
"पिचकू तो नहीं मिल रहा कहीं। चलिये दे दीजिये 100 ग्राम। वैसे अच्छा तो होगा ना। दही-बड़े के साथ की चटनी बनाने के लिये?"
"अरे भईया का बात करत हो। बहुत बढ़िया होगा। अच्छा एक बात और कहें आपसे?"
"हां-हां, बतलाईये।"
"आप लोगों ने ना औरतों की आदत खराब कर दी है, ये सब बना-बनाया सामान खरीद कर। पिचकू-फिचकू और ना जाने क्या-क्या। अरे कुछ काम-वाम भी करने दीजिये उन लोगों को। बस, बैठे-बैठे आराम से मुटाया करती हैं।"
"हम्म्म्म्म!"
"अरे हम लोग इतना काम करते हैं, कुछ वो भी तो करें।"
"लाईये भैया ईमली, कितना हुआ?"
दूसरा
"बढ़िया करवा लिये आपने नीचे के कमरे टाईल्स वगैरह लगवाकर।"
"हां जी, बहुत दिनों से विचार था, हो ही गया।"
"वैसे कितने दिनों तल चला काम?"
"यही कोई 4-5 महिना। दो-चार मजदूर लगे। हो गया।"
"कितनी मज़दूरी है यहां आजकल?"
"250-300 दिहाड़ी, पर आजकल मज़दूर मिलने में दिक्कत होती है।"
"अरे आपको तो मिल गये। हमारे यहां तो मिलते ही नहीं। सरकार 2 रुपया किलो चावल और 5 रुपये किलो दाल बांट रही है। बैठे-बिठाये मिल रहा है। फिर कोई काम क्यूं करे। सब अलाल हुए पड़े हैं।"
"अरे भैया, पिचकू है क्या?"
"पिच्च्च्क्कू! ये क्या होता है?"
"अरे ईमली की चटनी।"
"नहीं भईया, वो तो नहीं है। ईमली है कच्ची। सस्ती भी पड़ेगी। दे दें?"
"पिचकू तो नहीं मिल रहा कहीं। चलिये दे दीजिये 100 ग्राम। वैसे अच्छा तो होगा ना। दही-बड़े के साथ की चटनी बनाने के लिये?"
"अरे भईया का बात करत हो। बहुत बढ़िया होगा। अच्छा एक बात और कहें आपसे?"
"हां-हां, बतलाईये।"
"आप लोगों ने ना औरतों की आदत खराब कर दी है, ये सब बना-बनाया सामान खरीद कर। पिचकू-फिचकू और ना जाने क्या-क्या। अरे कुछ काम-वाम भी करने दीजिये उन लोगों को। बस, बैठे-बैठे आराम से मुटाया करती हैं।"
"हम्म्म्म्म!"
"अरे हम लोग इतना काम करते हैं, कुछ वो भी तो करें।"
"लाईये भैया ईमली, कितना हुआ?"
दूसरा
"बढ़िया करवा लिये आपने नीचे के कमरे टाईल्स वगैरह लगवाकर।"
"हां जी, बहुत दिनों से विचार था, हो ही गया।"
"वैसे कितने दिनों तल चला काम?"
"यही कोई 4-5 महिना। दो-चार मजदूर लगे। हो गया।"
"कितनी मज़दूरी है यहां आजकल?"
"250-300 दिहाड़ी, पर आजकल मज़दूर मिलने में दिक्कत होती है।"
"अरे आपको तो मिल गये। हमारे यहां तो मिलते ही नहीं। सरकार 2 रुपया किलो चावल और 5 रुपये किलो दाल बांट रही है। बैठे-बिठाये मिल रहा है। फिर कोई काम क्यूं करे। सब अलाल हुए पड़े हैं।"
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